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गंगा नदी - गंगा संरक्षण को लेकर आमरण अनशन पर बैठे स्वामी सानंद जी का हृदयघात से निधन

  • By
  • Rakesh Prasad
  • Deepika Chaudhary
  • October-15-2018

गंगा संरक्षण के लिए प्रभावी एक्ट बनाने एवं गंगा पर नए प्रोजेक्ट न बनाए जाने के लिए 113 दिनों से अनशन कर रहे स्वामी ज्ञानस्वरूप सानंद ने वीरवार को अंतिम श्वास ली. उनकी तबीयत बिगड़ने की चलते उन्हें प्रशासन द्वारा हरिद्वार स्थित मातृसदन से लाकर ऋषिकेश स्थित अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान एम्स में भर्ती कराया गया था, जहां डॉक्टरों ने बताया कि उनके शरीर में पोटेशियम और ग्लूकोज का स्तर काफी अधिक गिर गया था, जिसके कारण उन्हें हृदयघात आया. गौरतलब है कि इससे पूर्व भी मातृसदन के एक अन्य संत निगमानंद ने भी गंगा संरक्षण मुद्दे पर लम्बे समय तक अनशन के उपरांत देह त्याग कर दी थी.

लम्बे समय से गंगा-संरक्षण के लिए कर रहे थे तप –

स्वामी ज्ञान स्वरुप सानंद जी का वास्तविक नाम प्रो. गुरुदास अग्रवाल था एवं वह मूल रूप से उत्तर प्रदेश के कांधला, मुजफ्फरनगर के रहने वाले थे. भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान कानपुर से सेवानिवृत्त प्रो. जी.डी. अग्रवाल 22 जून. 2018 से गंगा नदी के संरक्षण, उनकी अविरलता के लिए सख्त कानून बनाने तथा गंगा पर बन रही जल विद्युत परियोजनाओं पर रोक लगाने को लेकर अनशन पर बैठे थे. इस अनशन को उन्होंने तप का नाम दिया था एवं विगत 111 दिनों से वें जल, शहद, नीम्बू एवं नमक ही ग्रहण कर रहे थे. उन्होंने अपनी मांगें मनवाने के उद्देश्य से फरवरी में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को पत्र भी लिखा था. केंद्रीय मंत्री उमा भारती भी दो बार उन्हें मनाने के लिए मातृसदन आयीं तथा केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने अपने पत्र के साथ सन्देशवाहक भेजकर आंदोलन समाप्त करने का अनुरोध किया था, जिस प्रस्ताव को उन्होंने ठुकरा दिया था. सांसद रमेश पोखरियाल निशंक से वार्ता विफल होने के बाद स्वामी सांनद ने मंगलवार (9 अक्टूबर) को जल का भी त्याग कर दिया था, जिसके उपरांत उनकी हालत बिगडती चली गयी और अंततः 11 अक्टूबर को उन्होंने एम्स में देह त्याग दी. 

कठिन उपवासों का इतिहास - 

गौरतलब है कि सन्यास लेने से पूर्व डॉ. गुरुदास अग्रवाल (जीडी) के नाम से जाने वाले स्वामी श्री ज्ञानस्वरूप सानंद की पहचान, कभी आई.आई.टी., कानपुर के प्रोफेसर और केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के सदस्य-सचिव के रूप में थी. अब उन्हें  गंगाजी की अविरलता के लिए व्यक्तिगत संघर्ष करने वाले भारत के सबसे अग्रणी शख्स के रूप में जाना जाता हैं. उन्होंने सन्यासी का बाना भी अपने संघर्ष को गति देने के लिए ही धारण किया था.

स्वामी श्री ज्ञानस्वरूप सानंद गंगा मूल की भगीरथी, अलकनंदा और मंदाकिनी.. जैसी प्रमुख धाराओं की अविरलता सुनिश्चित करने के लिए पहले भी पांच बार कठिन अनशन पर जा चुके थे..

पहला अनशन : 13 जून, 2008 से लेकर 30 जून, 2008;

दूसरा अनशन : 14 जनवरी, 2009 से 20 फरवरी, 2009;

तीसरा अनशन : 20 जुलाई, 2010 से 22 अगस्त, 2010;

चौथा अनशन : 14 जनवरी, 2012 से कई टुकड़ों में होता हुआ अप्रैल, 2012 तक

पांचवां अनशन : 13 जून, 2013 से 20 दिसंबर, 2013

गंगा संरक्षण के लिए स्वामी सानंद जी की तीन अपेक्षाएं थी –

गंगा की उपेक्षा से दुखी होकर स्वामी सानंद जी ने प्रधानमंत्री जी को पत्र लिखा था, जिसमें उन्होंने गंगा संरक्षण के लिए अग्रलिखित अपेक्षाएं रखी थी :

1. पहली अपेक्षा में अलकनंदा और मंदाकिनी को गंगा की बाजू बताते हुए स्वामी जी ने अपेक्षा की थी कि प्रधानमंत्री जी इन दोनो बाजुओं में छेद करने वाली क्रमशः विष्णुगाड-पीपलकोटी परियोजना, फाटा-ब्यूंग तथा सिगोली-भटवारी परियोजनाओं पर चल रहे सभी निर्माण कार्यों को तुरंत बंद करायें.

2. दूसरी अपेक्षा में उन्होंने कहा था कि न्यायमूर्ति गिरधर मालवीय समिति के द्वारा प्रस्तावित गंगाजी संरक्षण विधेयक पर संसद में अविलम्ब विचार कर पारित करने की बजाय, उसे ठण्डे बस्ते में डालने के लिए प्रधानमंत्री जी का जो कोई भी सहयोगी या अधिकारी अपराधी हो, प्रधानमंत्री जी उसे तुरंत बर्खास्त करें और इस खुद भी अपराध का प्रायश्चित करें. प्रायश्चित स्वरूप, वह विधेयक को शीघ्रातिशीघ्र पारित व लागू करायें.

3. राष्ट्रीय स्तर पर एक 'गंगा भक्त परिषद' का गठन होना चाहिए, गंगाजी के विषय में किसी भी निर्माण या विकास कार्य को करने के लिए (गंगा संरक्षण विधेयक कानून) के अंतर्गत स्वीकार्य होने के साथ-साथ गंगा भक्त परिषद की सहमति भी आवश्यक हो.

इस “गंगा भक्त परिषद” में सरकारी और गैर-सरकारी दोनो प्रकार के व्यक्ति, सदस्य शामिल हों. प्रत्येक सदस्य यह शपथ ले कि वह कुछ भी सोचते, कहते और करते समय गंगाजी के हितों का ध्यान रखेगा तथा उसका कोई भी बयान, सुझाव, प्रस्ताव, सहमति अथवा कार्य ऐसा नहीं होगा, जिससे मां गंगाजी का रत्ती भर भी अहित होने की संभावना हो.

देहदान कर ली संसार से विदा –

86 वर्षीय स्वामी सदानंद जी ने ऋषिकेश एम्स को अपना शरीर दान कर रखा था, इसी कारण उनका पार्थिव शरीर वहीं रखा गया है. अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान ऋषिकेश उनकी इस इच्छा का सम्मान करने के लिए जुट गया है. एम्स में डीन डॉ विजेंद्र सिंह ने बताया कि जब स्वामी सानंद स्वस्थ थे तो उन्होंने अपना शरीर एम्स को दान करने के लिए संकल्प पत्र हमें भिजवाया था, अब उनके देहावसान के पश्चात इस संकल्प पत्र का एम्स प्रशासन पालन करेगा और सम्पूर्ण आदर व सम्मान के साथ स्वामी सानंद की इस इच्छा का  पालन किया जाएगा.

शोकाकुल हुआ मातृसदन परिवार एवं देशवासी –

मातृसदन में कोई भी अचानक हुए इस देहांत पर विश्वास नहीं कर पा रहा है, उनका मानना है कि स्वामी जी वीरवार सुबह तक बिलकुल स्थिर थे, फिर उन्होंने आईवी से ग्लूकोज भी लेने की स्वीकृति डॉक्टरों को दे दी थी, ऐसे में उनके देह त्यागने का प्रश्न ही नहीं उठता है. मातृसदन के परमाध्यक्ष स्वामी शिवानंद ने जिला प्रशासन पर स्वामी सानंद जी की हत्या का आरोप लगाते हुए घोषणा की है कि नवरात्रों के उपरांत  वह स्वयं इस आंदोलन को आगे बढ़ाएंगे तथा स्वामी सानंद जी की हत्या में शामिल अधिकारियों व मंत्रियों को सजा दिलाने की मांग को लेकर कठोर तपस्या (अनशन) भी करेंगे.

पर्यावरणविद् राजेंद्र सिंह ने भी स्वामी जी के निधन पर शोक अर्पण करते हुए कहा कि प्रो. जी.डी. अग्रवाल देश के सबसे बड़े पर्यावरणविद एवं सच्चे राष्‍ट्रसेवक थे. उनके निधन का उन्हें बेहद दुःख है और इस बात पर रोष भी है कि सरकार वैसे तो सभी संतों से मुलाकात करती रहती है,  परन्तु सरकार ने इस संत की उपेक्षा की है.  

वहीँ उत्तराखंड के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने भी स्वामी ज्ञानस्वरूप सानंद के निधन पर गहरा दुख व्यक्त किया है. अपने शोक संदेश मे उन्होंने कहा कि गंगा संरक्षण को लेकर अनशनरत स्वामी सानंद जी के निधन से उन्हें बेहद दुख पहुंचा है. स्वामी जी की मांगों के आधार पर कार्य के अध्ययन और उस पर योजना बनाने में समय तो लगता ही है. साथ ही उन्होंने कहा कि प्रदेश एवं केंद्र सरकार लगातार उनसे संपर्क में थी तथा वार्ताएं भी होती रहती थी. 

सम्पादकीय टिपण्णी.

स्वामी सानंद जी से कभी मिलना नहीं हो पाया इसका दुःख रहेगा, मगर पर्यावरण के मित्रों से इनके निश्छल प्रयास के बारे में पता चला तो एक जुड़ाव ज़रूर महसूस हुआ. कारण दो थे, पहला इनकी प्रेरणा श्रोत गीता का होना, दूसरा साइंस, तकनीक इत्यादि से अलग इनका अध्यात्म के साथ गंगा पर आये इस संकट को जोड़ना. गंगत्व की बात करना. 

गंगा पर आया संकट नील नदी और सिन्धु नदी के क्रम में ही है, और पर्यावरण से ज्यादा संस्कृति और आध्यात्मिकता का संघर्ष है. भारत के वैज्ञानिक और प्रशासनिक संस्थान जबतक अपने मूल में गंगा संस्कृति और आध्यात्मिकता को नहीं रखेंगे मेरी समझ से सफलता अति-सीमित ही रहेगी.
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